कृष्णचरित्र जितना मोहक है उतना ही रहस्यमय है, जितना चंचल है उतना ही गंभीर, जितना सरल है उतना ही जटिल है, मानो प्रकृति का हर रूप अपने व्यतीक्रम के साथ उनके व्यक्तित्व में समाहित है।
जन्माष्टमी पर्व कितने सारे विचार एक साथ ले कर आता है, एक तरफ यह हमें श्री कृष्ण की मनोहारी लीलाओं का संस्मरण करवाता है तो दूसरी तरफ उन लीलाओं के गूढ़ अर्थ को समझने को ललचाता भी है।
जन्माष्टमी का पर्व श्री कृष्ण के लोकनायक, संघर्ष, शील, पुरुषार्थी, कर्मयोगी व युगांधर होने के महत्व को प्रतिपादित करता है।
भगवान श्री विष्णु का सोलह कला युक्त श्री कृष्ण का अवतार सचमुच ही अद्भुत, सीमारहित, व्याख्या से परे है।
श्री कृष्ण की विराटता अनंतता और सर्व कालिक प्रासंगिकता ही श्री कृष्ण तत्व के प्रति असीमित आकर्षण का कारण है।
श्री कृष्ण जैसा कोई पुत्र नहीं, उन सा कोई प्रेमी नहीं, कोई सखा नहीं, कोई भाई नहीं, कोई योद्धा नहीं, कोई दार्शनिक नहीं, कोई कूटनीतिज्ञ नहीं, वे हर रूप में चमत्कार करते हैं।
“अनेक रूप रूपाय विष्णवे प्रभु विष्णवे” वे अतिमानवीय हैं, दैवीय हैं किंतु फिर भी सर्वसुलभ है।
अपने भक्त की एक आर्त पुकार पर नंगे पैर दौड़े चले आने वाले कृष्ण के कौन से रूप की व्याख्या की जाए और क्या सचमुच व्याख्या संभव है, यह जटिल प्रश्न है।
भगवान श्री कृष्ण सच में जगदगुरु ही हैं।
कृष्ण के जन्म से उनकी लीला संवरण तक हर घटना अपने आप में गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों को समेटे हुए है, जो हमें भी यह विश्वास दिलाती है कि हर घटना एक दूजे से जुड़ी है और निर्धारित क्रम में उसका होना पूर्व निर्धारित है।
कृष्ण जन्म के समय बेड़ियों का टूटना ईश्वरीय अनुग्रह के पश्चात हर जीवात्मा का, हर बंधन से मुक्त होना दर्शाता है, यहां कृष्ण परम तत्व हैं।
सहस्त्रार पर उस परम तत्व को अनुभव कर ही भव सागर तरता है, यह संदेश वसुदेव के यमुना को पार करने में निहित है।
जन्म के बाद कई भयानक राक्षकों का वध मानवीय वृत्तियों के मान मर्दन का पर्याय है, यहां कृष्ण इन्द्रियों के दमन की वकालत करते हुए योगी हैं।
इंद्र की पूजा का विरोध कर्मकांड का विरोध है, गोवर्धन की पूजा प्रकृति के संरक्षण का प्रत्यक्ष प्रयास है।
जब वे मथुरा भेजे जाने वाले दूध का विरोध कर ग्वाल बाल पर उसके अधिकार की बात करते हैं, तो वे गरीबी, कुपोषण के उन्मूलन और अन्याय का विरोध करने वाले समाज सुधारक हैं।
रास रचाते, मुरली बजाते कृष्ण स्थूल जीवन में ललित कलाओं के महत्व का प्रतिपादन करते हुए एक दक्ष कलाकार हैं, तो सूक्ष्म रूप में साधना में रत किसी प्राणी को होने वाले अनुभवों के रूप में इन दोनों कलाओं का वर्णन करते है।
गोपाल बनकर कृषि प्रधान धरा पर पशु धन के संरक्षण का संदेश देते हैं।
ब्रजमंडल से पलायन, जीवन में कर्म धर्म व आदर्शों की स्थापना को व्यक्तिगत सुख से ऊपर रखने का अद्भुद व सर्वकालिक प्रासंगिक प्रयास है।
कंस का वध अधर्म व अन्याय के विनाश हेतु संरक्षित बल के प्रयोग की आवश्यकता बताता है।
कुब्जा का उद्धार, सोलह हजार राजकुमारियों का उद्धार, द्रोपदी की रक्षा समाज में नारी अस्मिता को स्थापित करने का माध्यम है।
सुदामा से प्रेम मित्र भाव की पराकाष्ठा है तो शिशुपाल वध सहनशील होते हुए भी, अति होने पर बल प्रयोग व दंड विधान को अपनाने की अनिवार्यता दर्शाता है।
महाभारत का युद्ध धर्म और अधर्म के बीच सतत चलने वाले द्वंद्व का चित्रण है।
गीता के रूप में नीति और प्रबंधन के चमत्कारी सूत्र केवल किसी ईश्वरीय सत्ता के मुख से ही निःसृत हो सकते हैं, जिन्होंने गीता पढ़ी है, वे ही इस चमत्कार का अनुभव कर सकते हैं।
साभार
ध्रुव जी ✍️
संस्कार यज्ञ