यह सिर्फ एक कहानी नहीं बल्कि आपसे एक बात पूछनी है
मैं सुचित्रा, आज मेरा जन्मदिन है !!
सचिन ने सुबह ही कहा :- “आज कुछ बनाना नहीं। लंच के लिए हम बाहर चलेंगे। तुम्हारे जन्मदिन पर आज तुम्हें एक अनोखी ट्रीट मिलेगी।”
कई साल हो गए हमारी शादी को, मैं सचिन को बहुत अच्छे से जानती थी हमेशा कुछ अनोखा करते हैं!!
एक नए बने मॉल की पार्किंग में हमारी गाड़ी पहुँची।
5वी मंजिल पर खाने पीने के ढेरों स्टॉल्स थे फाइनली एक बंद द्वार पर हम पहुँचे।
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। “अंधेरे में संवाद” ? ये कैसा नाम है, रेस्टॉरेंट का ?
बड़ा विचित्र लग रहा था सब कुछ। अगले मोड़ के बाद इतना अंधेरा हो गया कि, मैंने सचिन का हाथ पकड़ लिया और फिर शायद हम एक हॉल में पहुँचे।
एक सूटबूट धारी आदमी ने किसी को आवाज लगाई :- “संपत” !!!
“ये आज के हमारे स्पेशल गेस्ट हैं। आज मैडम का बर्थडे है। गिव देम स्पेशल ट्रीट। ऑर्डर मैंने ले लिया है, तुम इन्हें इनकी टेबलपर लेकर जाओ।
अब उस दूसरे आदमी संपत ने हमारे हाथ थामे और हमें टेबल पर पहुँचाया।
हम बैठ गए। मैंने सामने टेबल पर हाथ फिराया। जब टेबल ही नहीं दिख रहा तो खाना कैसे दिखेगा ? हम खाना कैसे खाएँगे ? ये कैसा जन्मदिन का उपहार है ? ऐसे न जाने कितने प्रश्न मेरे दिमाग में घुमड़ रहे थे। लेकिन मुझे सचिन पर भरोसा था फिर टेबल पर प्लेट्स आदि सजाए जाने की आवाजें आने लगीं। वेटर्स का आना जाना समझ में आ रहा था। फिर वो प्लेट्स में खाना सर्व करने लगा।
“मैंने परोस दिया है। अब आप लोग शुरू कीजिए। आपको कुछ दिखेगा नहीं लेकिन मुझे विश्वास है कि, स्पर्श और खुशबू से आपको खाने में एक अलग ही आनंद प्राप्त होगा।”
उस घनघोर अंधेरे में मैंने रोटी तोड़ी, प्लेट में रखी सब्जी को लपेटा और पहला निवाला लिया। उल्टे हाथ से मैंने प्लेट पकड़ी हुई थी अतः प्रत्येक पदार्थ की जगह सीधे हाथ के स्पर्श से मुझे ज्ञात हो रही थी।
और फिर, आहा… अंधेरे में भी खाने के पदार्थ तो अपने स्वाद का मजा दे ही रहे थे लेकिन साथ ही मैं पूछ रही थी और ऐसे ही सचिन मुझसे पूछता जा रहा, खुशबू, स्पर्श और आवाज बस यही काम कर रहे थे। बीच बीच में संपत, सब्जियाँ या अन्य कुछ और परोस देता
मेरा जन्मदिन, अंधेरे में लंच, एक अनोखा आनंद दे गया कैंडल लाइट डिनर से भी अधिक आनंददायक रहा।
“आप जब, बाहर जाना चाहें तो बताइएगा। मैं आपको बाहर छोड़ आऊँगा।” —संपत ने कहा।
तो सचिन बोल पड़ा : “हाँ…. हाँ…. अब चलो। बिल भी तो बाहर ही पे करना है। चलो संपत, ले चलो हमें।”
फिर संपत ने हम दोनों के हाथ थामे और हमें बाहर को ले चला। अंधेरे हॉल से बाहर निकल हम
दो मोड़ों के बाद प्रकाश दिखने लगा और हम संपत का हाथ छोड़ उसके पीछे चलते रहे।
उसका आभार मानने के लिए मैंने उसे आवाज लगाई तो संपत पलटा और मेरी ओर देखने लगा।
तब कमरे के प्रकाश में मैंने संपत का चेहरा देखा और “मेरे मुँह से हल्की चीख निकल गई क्योंकि, संपत की आँखों की जगह दो अंधेरे गढ्ढे नजर आ रहे थे। वो पूर्ण रूप से अँधा था” !!!
संपत बोला :- “यस मैडम ?”
मैं समझ नहीं पा रही थी कि, क्या कहूँ ? फिर मैंने कहा :- “संपत, अपनी ऐसी हालत में भी तुमने, हमारी खूब सेवा, इतनी बढ़िया खातिरदारी की। मैं ये बात सारी जिंदगी नहीं भूलूँगी।”
संपत :- “मैडम, आपने जिस अंधेरे को आज अनुभव किया है वो तो हमारा रोज का ही है। लेकिन हमने उसपर विजय पा ली है। We are not disabled, we are differently able people. We can lead our life without any problem with all joy and happiness as you enjoy.”
बिना किसी की सहानुभूति के मोहताज एक सशक्त व्यक्ति से आज सचिन ने मुझे मिलवाया। ऐसा जन्मदिन मुझे कभी नहीं भूलेगा।
सचिन बिल देकर मेरे पास आया हमेशा सचिन को उसकी फिजूलखर्ची के चिल्लाने वाली मैंने, बिल को देखा तो मेरी नजर बिल पर सबसे नीचे लिखे प्रिंटेड शब्दों पर ठहर गई…….
लिखा था : “We do not accept tips, Please think of donating your eyes, which will bring light to somebody’s life”…
(हम टिप्स स्वीकार नहीं करते। कृपया अपने नेत्रदान के बारे में सोचें, जो किसी के जीवन में रोशनी ले आएगा )