दिल्ली में यमुना जी का स्नान करने से ब्रह्माजी को वेदों का बोध हुआ था जिसके कारण इस तीर्थ निगमोद्बोध कहा गया और आजकल इस स्थान को निगम बोध घाट कहा जाता है ।
इसके बाद दिल्ली को सबसे पहले घने वन को साफ कर भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों के माध्यम से एक नगर के रुप में बसाया था जिसका इन्द्रप्रस्थ नाम भी उन्होंने ही दिया था।
श्री कालिका माँ की स्थापना भी उन्हों ने ही करवाई थी।
भगवान के परमधामगमन और पांडवों ने श्रीकृष्ण के पौत्र वज्रनाभ को इन्द्रप्रस्थ और मथुरा का राजा बनाया था।
इसी कालखंड में इन्द्रप्रस्थ से पाँच कोस दूर योगमाया मंदिर की स्थापना हुई जिसके आसपास बसी बस्ती को योगिनीपुर के नाम से जाना गया।
तब से लेकर 3838 वर्ष तक हिन्दुओं ने यहाँ राजधानी बनाये रखी।
इस बीच प्रतिष्ठान (प्रयागराज) के राजा समुद्रपाल या समुद्रगुप्त ने इन्द्रप्रस्थ पर राज्य किया।
वीर विक्रमादित्य ने इन्द्रप्रस्थ पर विजय पाई और उनके नवरत्नों में से एक वाराहमिहिर ने योगिनीपुर के पास एक वेधशाला की स्थापना की जिसे आजकल कुतुब काम्पलैक्स कहते हैं।
इस वेधशाला में नौ ग्रहों के नौ मंदिर और 27 नक्षत्रों के 27 मंदिरों की स्थापना की थी।
उनके इस कार्य से इस बस्ती का नाम मिहिरावली पड़ गया जिसे आजकल महरौली कहा जाता है।
फिर पांडवों के ही वंशज अनंगपाल तौमर ने 736 ई. में दिल्ली की स्थापना की और लालकोट (लाल किला) की स्थापना की….
उनकी 19 पीढ़ियों ने दिल्ली पर राज्य किया।
फिर तौमरवंश को हराकर चौहान राजा विग्रहराज चतुर्थ ने दिल्ली पर राज्य किया लेकिन तोमरों को नष्ट नहीं किया उन्हें अपने करदाता के रुप में रहने दिया।
पृथ्वीराज चौहान से पहले दिल्ली में पृथ्वीराज तौमर का राज्य था जिसने रायपिथोरा का निर्माण करवाया और कुतुब मीनार पर चढ़कर उसकी पुत्री यमुना जी के दर्शन किया करती थी।
तरावड़ी के प्रथम युद्ध में तौमर राजा अनंगपाल द्वितीय के पुत्र चाहड़पाल वीरगति को प्राप्त हुए थे और मु. गौरी को पकड़ने के बावजूद पृथ्वीराज ने छोड़ दिया था।
1193 में तरावड़ी के द्वितीय युद्ध में हारने के कारण चौहान वंश का अंत कर दिल्ली पर तुर्क सुल्तानों का राज्य आ गया और तोमरवंश के युवराज तेजपाल तोमर को कुतुब काम्पलैक्स मे फाँसी दे दी गई।
शेष बचे तोमर परिवार ग्वालियर राज्य में पलायन कर गये जहाँ के मूलनिवासी तोमरवंश था।
सोलहवीं शताब्दी में हेमचन्द्र भार्गव ने पानीपत से बंगाल के मध्य कब्जा जमाये हुए मुगल सेनाओं को 21 बार युद्ध करके बुरी तरह से परास्त किया और उत्तर भारत से मुस्लिम सल्तनतों को खत्म करके पुराने किले में राजतिलक करवाया और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की।
दुर्भाग्य से अकबर के साथ हुए पानीपत के दूसरे युद्ध में एक तीर आँख में घुस जाने के कारण और उसके मुस्लिम तोपचियों द्वारा गद्दारी कर अकबर से मिल जाने के कारण वह वीरगति को प्राप्त हुआ।
इस प्रकार निगमोद्बोध तीर्थ, इन्द्रप्रस्थ, दिल्ली, योगिनीपुर, मिहिरावली अनेक नामों से प्रसिद्ध भारत की महिमामयी राजधानी और गरिमामयी नगरी के धर्मराज युधिष्ठिर, श्रीकृष्ण पौत्र वज्रनाभ, योगमाया, रानी पद्मावती, वीर विजेता समुद्रगुप्त, विश्वविख्यात वीर विक्रमादित्य, वाराहमिहिर, राजा अनंगपाल, पृथ्वीपाल, चाहड़पाल, हेमचंद्र विक्रमादित्य ही इस राजधानी के विशेष स्मरणीय महापुरुष हुए।
यह सब इतिहास पुराणों, महाभारत, बौद्धजातकों, इन्द्रप्रस्थ प्रबन्ध, कुमायुं की वंशावली, नाथद्वारे से प्रकाशित मोहन चन्द्रिका पत्रिका और सत्यार्थ प्रकाश आदि ग्रन्थों में हैं।
यह इतिहास लिखने की जरुरत क्यों पड़ी।
कारण यह है कि क्या धर्मराज युधिष्ठिर, श्रीकृष्ण पौत्र वज्रनाभ, योगमाया, रानी पद्मावती, वीर विजेता समुद्रगुप्त, विश्वविख्यात वीर विक्रमादित्य, वाराहमिहिर, राजा अनंगपाल, पृथ्वीपाल, चाहड़पाल, हेमचंद्र विक्रमादित्य में से किसी के नाम पर दिल्ली की किसी गली का भी नाम रखा गया है।
हजारों सरकारी भवनों में से किसी का नाम रखा गया है।
क्या कोई भी स्मृति दिल्ली ने सहेज कर रखी है।
नहीं, केवल एक पृथ्वीराज रोड है जो पृथ्वीराज चौहान की मु. गौरी से हार की याद दिलाती है।
दिल्ली के मार्गों के नाम जानते हैं क्या हैं, बाबर रोड, हुमायुं रोड़, अकबर रोड, शाहजहां रोड, औरंगजेब लेन, दाराशिकोह रोड, फिरोजशाह रोड, तुगलक रोड, क्या हमें लगता है कि ये दिल्ली नगर है, ऐसा लगता है जैसे हम मुगलिस्तान में रह रहे हों।
अपने पूर्वजों से गद्दारी……ये सब किसने किया ?
हे कृष्ण, कभी तो इधर भी दया कीजिये
Compiled