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मकर सक्रांति पर्व का महत्व

मकर सक्रांति पर्व का क्या महत्व है


सूर्य के उत्तरायण प्रवेश के साथ स्वागत-पर्व के रूप में मकर संक्रांति का उत्सव मनाया जाता है। वर्षभर में बारह राशियों मेष, वृषभ, मकर, कुंभ, धनु इत्यादि में सूर्य के बारह संक्रमण होते हैं और जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है, तब मकर संक्रांति होती है। सूर्य का उत्तरायण प्रवेश अत्यंत शुभ माना गया है। महाभारत में उल्लेख मिलता है कि भीष्म शरशैया पर लेटे हुए तब तक देह त्याग को रोके रहे जब तक उत्तरायण का आरंभ नहीं हुआ।

वेदों में वर्णित भगवान आदित्य तेजस्वी हैं, तांबई रंग के हैं और सात घोड़ों के रथ पर सवार हैं


भारतीय परंपरा में प्रत्येक उत्सव का तथा इससे जुड़े व्यंजनों का भी अपना महत्व है। चूँकि तिल की सामग्री, (गुड़ तथा शक्कर के साथ बनी) उष्ण होती है। अतः शीत ऋतु में इसका सेवन स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभप्रद है। अतः मकर संक्रांति तिल की सामग्री का एवं खिचड़ी (मूँग की दाल तथा चावल आखा नमक) का विशेष रूप से दान देने का पर्व माना जाता है।

साथ ही गाय को गुड़, दलिया विशेष प्रकार से बनाकर खिलाया जाता है। तीर्थ स्थानों एवं पवित्र नदियों (गंगा, यमुना, त्रिवेणी संगम, नर्मदा आदि) में स्नान कर दान देकर, श्राद्ध भी किए जाते हैं। इस प्रकार यह उत्सव धर्म, अर्थ, काम एवं पुष्टिमार्गीय मोक्ष को प्रदान करने वाला है।

मकरसंक्रान्ति पर्व यानि सतकर्म करने का पर्व दान योग्य ब्राह्माण को दान दक्षिणा गौसेवा गंगाजी एवं तिर्थो मे पूण्य करने का अनेक गुना फल है। पर निश्काम होकर अपना धर्म जान कर भगवद्परायणता के पश्चात ही सतकर्म करे।

शुभम भवतु।

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