17 अगस्त 1909 : इंग्लैंड की पेंटोविल्ले जेल के बाहर वीर सावरकर एक 25 वर्ष के नवयुवक के शव को लेने की प्रतीक्षा कर रहे थे, फांसी पर लटकाने के बाद वह शव ब्रिटिश सरकार ने किसी को नही सौंपा था।
ये शव था महान क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा का..
एक धनी और सम्पन्न परिवार का वह बेटा जिसे उसके ब्रिटिश सरकार मे कार्यरत सिविल सर्जन पिता ने इंग्लैंड पढ़ने भेजा था।
पर क्रांति की ज्वाला ऐसी थी की वीर सावरकर के साथ मिल कर मदन लाल जी ने 1901 मे भारत पर अत्याचार कर के इंग्लैंड लौटे एक ब्रिटिश आर्मी ऑफिसर कर्ज़न वाईली को सबक सीखने की सोची।
मदन लाल में हौंसला और निडरता इतनी थी की जब अदालत मे इन पर कारवाई हुई तो इन्होने साफ कह दिया की ब्रिटिश सरकार को कोई हक़ नही है मुझ पर मुकदमा चलाने का… जो ब्रिटिश सरकार भारत मे लाखो बेगुनाह देशभक्तों को मार रही है और हर साल 10करोड़ पाउंड भारत से इंग्लैंड ला रही है, उस सरकार के कानून को वो कुछ नही मानते, इसलिए इस कोर्ट मे वो अपनी सफाई भी नही देंगे, जिसे जो करना है कर लो…”
ऐसे महान क्रांतिकारी मदनलाल ढींगरा की आज पुण्यतिथि है
।।नमन है इस शूरवीर को।।
द्वारा
हार्दिक कुमार
#azadikaamritmahotsav