महाकाव्य महाभारत के अरण्यपर्व में, यक्ष और युधिष्ठिर के बीच जो संवाद हुआ, वही यक्ष प्रश्न प्रसंग है। सभी के जीवन से जुड़े उन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए अंत तक ध्यान से पढ़ें।
एक बार पाण्डव अपने तेरह-वर्षीय वनवास में, प्यास बुझाने के लिए एक जलाशय से पानी लेने पहुँचे।
जलाशय के स्वामी अदृश्य यक्ष ने आकाशवाणी द्वारा पहले कुछ प्रश्नों का उत्तर देने की शर्त रखी। सहदेव, नकुल, अर्जुन और फिर भीम ने उस शर्त को अनदेखा कर जलाशय से पानी लेने का प्रयास किया, और इसी कारण चारों निर्जीव हो गए।
अंत में युधिष्ठिर ने धैर्यपूर्वक सभी प्रश्नों का उत्तर दिया, जिससे यक्ष संतुष्ट हुआ और पाण्डवों के प्राण बचे।
प्रश्न अनेक हैं, लोकेशानन्द यहाँ संक्षेप में नौ ही लिख रहा है-
१- मैं कौन हूँ?
= जो जानने में आता है, वह तुम नहीं हो। देह मन बुद्धि इंद्रियाँ तुम नहीं हो, तुम तो उन्हें और उनके माध्यम से जानने वाले हो।
२- जीवन का उद्देश्य क्या है?
= स्वयं को जानना जीवन का उद्देश्य है। यही मोक्ष है, मुक्ति है।
३- जन्म का कारण क्या है?
= सांसारिक कामनाएँ ही जन्म का मूल कारण हैं।
४- जन्म मरण से मुक्त कौन है?
= जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया, वह जन्म मरण से मुक्त है।
५- संसार में दुख क्यों है?
= कामना और उससे उत्पन्न भय ही दुख का एकमात्र कारण है।
६- ईश्वर ने दुख की रचना क्यों की?
= ईश्वर से दुख की नहीं, संसार की ही रचना हुई। मनुष्य ने स्वयं अपनी कामनाओं से दुख की कल्पना की है।
७- संसार में सबसे महान आश्चर्य क्या है?
= प्रतिदिन अपनी आँखों से दूसरों की मृत्यु देखते हुए भी, मनुष्य को अपनी मृत्यु का विचार तक नहीं आता। यही महान आश्चर्य है।
८- किसी का ब्राह्मण होना किस बात पर निर्भर करता है?
= ब्राह्मणत्व जन्म से नहीं होता। ब्राह्मणत्व तो गुण और स्वभाव पर ही निर्भर है। जन्मना ब्राह्मण यदि आत्मज्ञान विहीन है, तो वह ब्राह्मण नहीं है। और कोई अन्य जो जन्मना ब्राह्मण नहीं है, यदि वह आत्मज्ञानी है, तो वह ब्राह्मण है।
९- कौन से शास्त्र का अध्ययन करके मनुष्य ज्ञानवान होता है?
= आत्मज्ञान शास्त्राध्ययन मात्र से नहीं होता। आत्मज्ञानी महापुरुष के संग से ही मनुष्य ज्ञानवान होता है।