वेद विद्या में आर्य संस्था गुरुकुलों और आश्रमों की भूमिका

वेद विद्या में आर्य संस्था गुरुकुलों और आश्रमों की भूमिका

वेद विद्या अर्थात् आर्ष-ग्रंथ, आर्षपाठ-विधि की रक्षा. प्रचार और प्रसार में आर्य संस्था गुरुकुलों और आश्रमों की भूमिका–
एक विवेचन

महर्षि दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना के समय यह अच्छी तरह से पहचान लिया था कि भारत को विश्व-गुरु के पद पर पुन: प्रतिस्थापित/आरूढ़ करने वाला वेद ज्ञान लुप्त प्राय होता जा रहा है , वेद और वैदिक साहित्य से संबंधित अनेक ऋषि कृत ग्रंथों का अध्ययन और अध्यापन बहुत कम विद्वानों तक सीमित हो गया है/
और वेद विद्या के इस ह्रास के कारण ही भारत को दुर्दिन देखने पड़े ऐसा महर्षि दयानंद सरस्वती का मंतव्य है /

आर्य समाज की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य वेद का पढ़ना और पढ़ाना है अतः महर्षि दयानंद सरस्वती के द्वारा भी अपने जीवन में वेद की रक्षा के लिए सर्व विध प्रयास किए गए थे/ और स्वामी दयानंद सरस्वती के समय में ही संस्कृत की 1, 2 पाठशालाओं का उद्घाटन ऋषि जी द्वारा हुआ और वहां वैदिक साहित्य के पठन-पाठन की व्यवस्था का शुभारंभ किया गया था/

कालांतर में महर्षि दयानंद सरस्वती के अनन्य शिष्य स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती ने हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना की और वेद और वैदिक साहित्य को पढ़ने और पढ़ाने का संस्थागत रूप से एक व्यवस्थित प्रयास किया गया था /
तत्पश्चात पूरे भारतवर्ष में आर्य गुरुकुलों के स्थापित करने का एक क्रम चल पड़ा था/
महर्षि दयानंद सरस्वती के साक्षात शिष्य स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती ने गुरुकुल कांगड़ी हरिद्वार के अतिरिक्त गुरुकुल कुरुक्षेत्र और गुरुकुल इंद्रप्रस्थ की भी स्थापना की गयी , जो वैदिक धर्म और वैदिक साहित्य के अध्ययन और अध्यापन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कार्य रहा है /
स्वामी श्रद्धानंद जी बहुत दूरदर्शी महापुरुष थे उन्होंने इस बात को अच्छी तरह से समझ लिया था कि भारत में अगर वेद विद्या को पुनर्स्थापित करना है तो उसका सर्वोत्तम और सशक्त माध्यम गुरुकुल ही हो सकता है , और गुरुकुलों को भी ऐसे स्थानों पर सर्वप्रथम स्थापित किया जाए जिनका भारत की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से विशेष महत्व है /
अतः महर्षि दयानंद के शिष्य स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती ने हरिद्वार क्षेत्र जो आर्य (हिंदू)परंपरा के एक तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है और जहां महर्षि दयानंद सरस्वती ने पाखंड खंडनी पताका भी फहरायी हो उस स्थान पर गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना की, ताकि इस तीर्थ क्षेत्र में आने वाला प्रत्येक देशवासी वेद विद्या से संबंधित इस संस्था के संपर्क में आकर के इस ईश्वरीय ज्ञान वेद के चमत्कार, प्रभाव और परिणाम, को यहां के ब्रह्मचारी और आचार्यों को देख कर के प्रत्यक्ष रुप से अनुभूत कर सकें/
इसी प्रकार स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती ने धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में भी गुरुकुल की स्थापना की थी, क्योंकि भारत के इतिहास में कुरुक्षेत्र का अद्भुत और अविस्मरणीय महत्व है , महाभारत के काल में जिस कुरुक्षेत्र में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता का विशिष्ट उपदेश देकर भारत भूमि के भाग्य का निर्णायक कार्य किया था, जिस भूमि में श्री कृष्ण के मुखारविंद से योग,अध्यात्म, क्षात्र-धर्म और राजनीति के संदर्भ में अद्भुत उपदेश का प्रस्फुटन हुआ उसी दिव्य भूमि पर श्रद्धानंद सरस्वती ने
गुरुकुल कुरुक्षेत्र की स्थापना करके विशिष्ट कार्य किया था /
इसके साथ ही भारत की राजनैतिक राजधानी और प्राचीन काल से ही बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान इंद्रप्रस्थ (वर्तमान में फरीदाबाद क्षेत्र का दिल्ली से सटा हुआ क्षेत्र) में भी गुरुकुल इंद्रप्रस्थ की स्थापना करके वेद विद्या के प्रचार प्रसार के लिए एक अद्भुत केंद्र का निर्माण किया था /
यह कार्य तत्कालीन परिस्थितियों में इतना अधिक महत्वपूर्ण था जिसका लक्ष्य बहुविध था अर्थात वेद के विद्वानों को तैयार करना,राष्ट्रभक्त नौजवानों को तैयार करना, उच्च कोटि के लेखक और प्रचारक तैयार करना, और देश की स्वतंत्रता के लिए एक अद्भुत केंद्र के रूप में इन स्थानों को स्थापित करना आदि/
गुरुकुल इंद्रप्रस्थ क्रांतिकारियों की शरण स्थली भी रहा है /
मेरा कहने का आशय यह है पराधीनता के उस कालखंड में ही आर्य-गुरुकुलों की स्थापना बहुआयामी कार्य के उद्देश्य से की गई थी ,
जिनमें प्रमुख उद्देश्य तो वेद का अध्ययन और अध्यापन था और उसी संदर्भ में राष्ट्रीय आंदोलनों के लिए भूमिका बनाना तथा वैदिक संस्कृति और राष्ट्र रक्षा के सभी संभव कार्यों को संपादित करने का सूत्रपात करना भी एक अन्य उद्देश्य था/

कालांतर में भारत में अनेक गुरुकुलों की स्थापना हुई और सब गुरुकुलों ने वेद, वैदिक-साहित्य और आर्ष ग्रंथों को ही अपना प्रमुख लक्ष्य माना था/

स्वतंत्रता से पूर्व अनेक गुरुकुलों की स्थापना हो चुकी थी
जिनमें हरियाणा का गुरुकुल महाविद्यालय झज्जर, गुरुकुल गदपुरी (फरीदाबाद,) गुरुकुल वृंदावन और अन्य कई गुरुकुल सम्मिलित है/
पूरे भारत में अनेक गुरुकुल स्वतंत्रता से पूर्व स्थापित हो चुके थे और देश की स्वतंत्रता के बाद गुरुकुलों की स्थापना तीव्र गति से आगे बढ़ी थी/
कालांतर में पौराणिक दृष्टि से विद्या का केंद्र वाराणसी में कन्या गुरुकुल की स्थापना हुई चित्तौड़गढ़ में पद्मिनी कन्या गुरुकुल की स्थापना हुई ऐसे अनेक गुरुकुलों की लंबी श्रृंखला है /

कथनाभिप्राय यह है कि गुरुकुलों को वेदार्ष पाठ-विधि की रक्षा के लिए ही स्थापित किया गया था /

और वर्तमान समय में आर्य समाज में जितने भी वेद के विद्वान हैं वैदिक साहित्य के लेखक प्रचारक और प्रचारक हैं वह सब इन्हीं
आर्ष-पाठ -विधि के गुरुकुलों की देन है , इस आर्ष पाठ विधि के महान कार्य में विशिष्ट योगदान गुरुकुल महाविद्यालय झज्जर का रहा है गुरुकुल झज्जर से आर्ष पाठ विधि के विद्वानों का एक बड़ा वर्ग तैयार हुआ और उस वर्ग ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर के आर्ष पाठ विधि के अनेक गुरुकुलों की स्थापना की है/

स्वामी प्रणवानंद सरस्वती, स्वामी धर्मानंद सरस्वती, स्वामी सत्यपति परिव्राजक रोजड़ गुजरात ने जहां बालकों के गुरुकुलों की विशेष स्थापना की वहीं अनेक विदुषी बहनों ने भी अनेक आर्ष कन्या गुरुकुलों की स्थापना की है/
और यह आर्य समाज के गुरुकुलों का गौरवशाली पक्ष है कि वेद की अनेक विदुषी आचार्याओं का निर्माण भी आर्ष पाठ विधि के गुरुकुलों द्वारा हुआ है/
कन्या गुरुकुल नरेला दिल्ली तथा कन्या गुरुकुल पाणिनी महाविद्यालय वाराणसी
से पढी अनेक बहनों ने भारतवर्ष में आर्ष पाठ विधि के अनेक कन्या गुरुकुलों की स्थापना, संचालन और अध्यापन में अपने जीवन को समर्पित किया है/

आज मैं उन सब का नाम उल्लेख नहीं कर रहा हूं किसी अन्य लेख में नाम उल्लेख भी करूंगा /
मेरा अभिप्राय केवल यह बताने का है कि आर्य समाज के गुरुकुलों द्वारा वेद की रक्षा के लिए इतना कुछ किया गया है कि उसका मूल्यांकन नहीं जा सकता/
मैं समस्त आर्य सज्जनों और आर्य देवियों से निवेदन करता हूं कि भारत वर्ष में आर्ष पाठ विधि के जितने भी गुरुकुल हैं, उन गुरुकुलों के संचालन में, उनकी सहायता में यथासंभव तन मन धन से सहयोग करना जारी रखें , और कोई भी गुरुकुल आर्ष पाठ विधि के कार्य में स्वयं को असहाय ना समझे , इसका सदैव ध्यान रखा जाए /
यदि गुरुकुल और गुरुकुल की आर्ष पाठ विधि लुप्त हो जाएगी तो आर्य समाज के क्षितिज से, आर्य समाज के मंच से , और आर्य समाज के परिदृश्य से विद्वान और विेदुषियों का अभाव हो जाएगा /

आर्य समाज को अपनी पुरानी ऊर्जा प्रदान करने के लिये उसी पुरानी पीढ़ी की योग्यता वाले वेद के विद्वान और विदुषियों की बहुत आवश्यकता है ,
और उन विद्वान विदुषियों का निर्माण आर्ष पाठ विधि के गुरुकुलों में ही हो सकेगा /

यदि आर्य समाज की आत्मा वेद हैं , तो आर्य समाज के प्राण आर्ष पाठ विधि है, और और आर्य समाज का अंत:करण तथा मस्तिष्क गुरुकुल, उनके आचार्य और आचार्यायें , विद्वान और विदुषियाँ हैं/
अत: आर्य समाज रूपी दिव्य पुरुष की इस विग्रहवान संकल्पना को सुरक्षित रखने के लिए
वेद, वेदार्ष पाठ विधि , गुरुकुल, आचार्य ,आचार्याएँ विद्वान और विदुषियों का सम्मान,संरक्षण और अस्तित्व सुरक्षित रहना चाहिए/

क्योंकि यह परस्पर अन्योन्याश्रित है और इनका समष्टिगत रूप से सामंजस्य और सह-अस्तित्व बने रहने से आर्य समाज का स्थायित्व निश्चित रूप से बना रहेगा/


डॉ राजवीर सिंह शास्त्री, दिल्ली

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