शास्त्री जी जब रेलमंत्री थे उस वक्त उन्होंने माँ को नहीं बताया था कि वो रेलमंत्री हैं, बल्कि ये बताया कि वे रेलवे में नौकर हैं। इसी दौरान मुगलसराय में एक रेलवे का कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमें शास्त्री जी को ढूंढते-ढूंढते उनकी मां पहुंच गईं ।
उन्होंने (मां) वहां मौजूद लोगों से पूछा कि वहां मेरा बेटा भी आया है, वो भी रेलवे में है !!
लोगों ने जब पूछा क्या नाम है आपके बेटे का, तो उन्होंने जब नाम बताया तो सब चौंक गए और बोले, ”ये झूठ बोल रही है।”
पर शास्त्री जी की मां बोलीं, ”नहीं वो आए हैं।”
लोगो ने उन्हें लाल बहादुर शास्त्री के सामने ले जाकर पूछा, ”क्या वही हैं ?”
तो माँ बोलीं, ”हां, वो मेरा बेटा है।”
लोग, मंत्री जी से दिखा कर बोले, ”वो आपकी माँ है।”
तो उन्होंने अपनी माँ को बुला कर पास बैठाया और कुछ देर बाद घर भेज दिया।
इसके बाद वहां मौजूद पत्रकारों ने जब शास्त्री जी से पूछा, ”आप ने, उनके सामने भाषण क्यों नहीं दिया।”
तब शास्त्री जी ने जो जवाब दिए उसे सुनकर वहां सभी चौंक उठे और सन्न रहे गए ।
शास्त्री जी ने कहा, ”मेरी माँ को नहीं पता कि मैं मंत्री हूँ। अगर उन्हें पता चल जाय तो लोगों की सिफारिश करने लगेगी और मैं मना भी नहीं कर पाउंगा और उन्हें अहंकार भी हो जाएगा।”
ऐसा ही एक और किस्सा आपको बताते हैं, आजादी के बाद जब कांग्रेस को देश की सत्ता की बागडोर मिली उस वक्त तक पार्टी शास्त्री जी के महत्व को समझ चुकी थी । शास्त्री जी की राजनीतिक छवि की बात करें तो वे स्वभाव से विनम्र और व्यक्तित्व के काफी इमानदार व्यक्ति थे । अगर उनके इस व्यक्तित्व के लिए एक उदाहरण दें तो आपको बता दें 1951 में उन्होंने देश के रेलमंत्री का कार्यभार संभाला । उसी दौरान एक रेल दुर्घटना ऐसी सामने आई जिसमें कई लोगों की मौत भी हुई ।
इस घटना के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए शास्त्री जी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया । तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू द्वारा इस्तीफा मंजूर न करने पर उन्होंने कहा, “शायद मेरे लंबाई में छोटे होने एवं नम्र होने के कारण लोगों को लगता है कि मैं बहुत दृढ नहीं हो पा रहा हूँ। यद्यपि शारीरिक रूप से मैं मजबूत नहीं हूं लेकिन मुझे लगता है कि मैं आंतरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं हूँ।”