शिष्य होने का अर्थ क्या है? शिष्य होने का अर्थ है पूरे अस्तित्व के प्रति खुले होना। हर समय हर ओर से सीखने को तैयार रहना।जीवन का हर क्षण, चाहे वह खुशी के कारण हो या ग़म के हमें कुछ न कुछ सीखने का मौका देता है। हमें जीवन में हमेशा एक शिष्य बनकर अच्छी बातो को सीखते रहना चाहिए और बुरी बातों से सचेत हो जाना चाहिए। यह जीवन हमें आये दिन किसी न किसी रूप में किसी गुरु से मिलाता रहता है, यह हम पर निर्भर करता है कि क्या हम अपने गुरु की तरह एक शिष्य बनकर उस गुरु से मिलने वाली शिक्षा को ग्रहण कर पा रहे हैं कि नहीं। जहां सत्य की, अच्छाई की, सत्कर्मों की, सदाचरण की संगत मिले वहां अवश्य प्राप्त करो , और जहां इसका विपरीत हो वहां से जितनी दूरी बना कर रख सको रखने का प्रयत्न करो। यह न केवल हमारे स्वयं के, बल्कि हम से जुड़े हमारे आसपास के लोगों के लिए भी हितकारी होगा। कुसंगति से बचाव निश्चित ही आपको भटकाव से बचाता है और अच्छे लोगों की संगति से ग्रहण की गई शिक्षा आपको नई दिशाएं प्रदान करके सफलता की नई सीढ़ियां चढ़ाती हैं। विचार अवश्य करें और अनुपालन करें।
श्रीरामकृष्ण परमहंस, हिन्दू धर्म में परमहंस की उपाधि उसे दी जाती है, जो समाधि की अंतिम अवस्था में होता है। रामकृष्ण परमहंस ने दुनिया के सभी धर्मों के अनुसार साधना करके उस परम तत्व को महसूस किया था। उनमें कई तरह की सिद्धियां थीं लेकिन वे सिद्धियों के पार चले गए थे।
उन्होंने विवेकानंद को अपना शिष्य बनाया, जो बुद्धि और तर्क में जीने वाला बालक था। स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस से उनका शिष्य बनने से पूर्व ये प्रश्न पूछे थे। श्रीरामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद के हर प्रश्न का समाधान कर उनकी बुद्धि को भक्ति में बदल दिया था।
यहां प्रस्तुत हैं रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के बीच हुए एक अद्भुत संवाद के अंश…
स्वामी विवेकानंद : मैं समय नहीं निकाल पाता। जीवन आपाधापी से भर गया है।
रामकृष्ण परमहंस : गतिविधियां तुम्हें घेरे रखती हैं, लेकिन उत्पादकता आजाद करती है।
स्वामी विवेकानंद : आज जीवन इतना जटिल क्यों हो गया है?
रामकृष्ण परमहंस : जीवन का विश्लेषण करना बंद कर दो। यह इसे जटिल बना देता है। जीवन को सिर्फ जियो।
स्वामी विवेकानंद : फिर हम हमेशा दु:खी क्यों रहते हैं?
रामकृष्ण परमहंस : परेशान होना तुम्हारी आदत बन गई है, इसी वजह से तुम खुश नहीं रह पाते।
स्वामी विवेकानंद : अच्छे लोग हमेशा दुःख क्यों पाते हैं?
रामकृष्ण परमहंस : हीरा रगड़े जाने पर ही चमकता है। सोने को शुद्ध होने के लिए आग में तपना पड़ता है। अच्छे लोग दुःख नहीं पाते बल्कि परीक्षाओं से गुजरते हैं। इस अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है, बेकार नहीं होता।
स्वामी विवेकानंद : आपका मतलब है कि ऐसा अनुभव उपयोगी होता है?
रामकृष्ण परमहंस : हां, हर लिहाज से अनुभव एक कठोर शिक्षक की तरह है। पहले वह परीक्षा लेता है और फिर सीख देता है।
स्वामी विवेकानंद : समस्याओं से घिरे रहने के कारण हम जान ही नहीं पाते कि किधर जा रहे हैं?
रामकृष्ण परमहंस : अगर तुम अपने बाहर झांकोगे तो जान नहीं पाओगे कि कहां जा रहे हो। अपने भीतर झांको। आखें दृष्टि देती हैं। हृदय राह दिखाता है।
स्वामी विवेकानंद : क्या असफलता सही राह पर चलने से ज्यादा कष्टकारी है?
रामकृष्ण परमहंस : सफलता वह पैमाना है, जो दूसरे लोग तय करते हैं। संतुष्टि का पैमाना तुम खुद तय करते हो।
स्वामी विवेकानंद : कठिन समय में कोई अपना उत्साह कैसे बनाए रख सकता है?
रामकृष्ण परमहंस : हमेशा इस बात पर ध्यान दो कि तुम अब तक कितना चल पाए, बजाय इसके कि अभी और कितना चलना बाकी है। जो कुछ पाया है, हमेशा उसे गिनो; जो हासिल न हो सका उसे नहीं।
स्वामी विवेकानंद : लोगों की कौन सी बात आपको हैरान करती है?
रामकृष्ण परमहंस : जब भी वे कष्ट में होते हैं तो पूछते हैं, ‘मैं ही क्यों?’ जब वे खुशियों में डूबे रहते हैं तो कभी नहीं सोचते, ‘मैं ही क्यों?’
स्वामी विवेकानंद : मैं अपने जीवन से सर्वोत्तम कैसे हासिल कर सकता हूं?
रामकृष्ण परमहंस : बिना किसी अफसोस के अपने अतीत का सामना करो। पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने वर्तमान को संभालो। निडर होकर अपने भविष्य की तैयारी करो।
स्वामी विवेकानंद : एक आखिरी सवाल। कभी-कभी मुझे लगता है कि मेरी प्रार्थनाएं बेकार जा रही हैं?
रामकृष्ण परमहंस : कोई भी प्रार्थना बेकार नहीं जाती। अपनी आस्था बनाए रखो और डर को परे रखो। जीवन एक रहस्य है जिसे तुम्हें खोजना है। यह कोई समस्या नहीं जिसे तुम्हें सुलझाना है। मेरा विश्वास करो- अगर तुम यह जान जाओ कि जीना कैसे है तो जीवन सचमुच बेहद आश्चर्यजनक है।
धन्यवाद प्रणाम