स्वर्गीय तुकाराम ओम्बले सेना में नायक थे। सेना से रिटायर होने के बाद उन्होंने मुंबई पुलिस ज्वाइन की थी। चाहते तो पेंशन ले कर आराम से घर रह सकते थे। पर नहीं, वे जन्मे थे लड़ने के लिए, जीतने के लिए… होते हैं
एक थे कैप्टन विक्रम बत्रा… कारगिल युद्ध में एक चोटी जीत लिए, तो अधिकारियों से जिद्द कर के दूसरी चोटी के युद्ध में निकल गए, दूसरी जीत के बाद तीसरी, तीसरी के बाद चौथी… अधिकारियों ने छुट्टी दी, तो नकार दिए। कहते थे, “ये दिल मांगे मोर..” जबतक मरे नहीं तबतक लड़ते रहे…
स्वर्गीय ओम्बले , कैप्टन विक्रम बत्रा उसी श्रेणी के योद्धा थे। कलेजे के ताव से चट्टान तोड़ने की हिम्मत रखने वाले… कर्तव्यपरायणता की परिभाषा लिखने वाले…
कभी-कभी हम सामान्य जन कुछ पुलिस कर्मियों की गलत हरकतों के कारण चिढ़ कर उन्हें भला-बुरा कह देते हैं। मुझे लगता है हजार बुरे एक तरफ, और स्वर्गीय तुकाराम जी जैसा कोई एक, एक तरफ रहे तब भी वे बीस पड़ेंगे।
ऐसे योद्धाओं की कहानियाँ कही-सुनी जानी चाहिए। भगत सिंह, भगत सिंह इसलिए बने क्योंकि उन्होंने बचपन मे करतार सिंह सराबा की कथा सुनी थी। पण्डित चंद्रशेखर तिवारी, चंद्रशेखर आजाद इसलिए बने क्योंकि उन्होंने राणा और शिवा की कहानियाँ सुनी थीं। अपने बच्चों को कैप्टन विक्रम बत्रा, तुकाराम ओम्बले जैसे वीरों की कहानियाँ सुनाना भारत! तभी तुम्हारे बच्चे योद्धा बनेंगे… वरना मोबाइल गेम्ज़, फ़ेक फ़िल्मी टीवी ग्लैमर, टिक-टोक आदि तो कटिबद्ध हैं ही उनसे उनका बचपन और जवानी क्षीनने के लिए, उन्हें उम्र भर के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग बना देने के लिए फ़ैसला आपके हाथ है॰॰॰ आगे बढ़कर प्रयास कीजिए समाज के कोने कोने में अपनी घुसपैठ कर रही स्तरहीन नैतिक मूल्यों का पतन करतीं मोबाइल ऐप और बेलगाम होते ओटीटी प्लैट्फ़ॉर्म और वेब सिरीज़ पर एकजुट होकर रोक लगवाने के॰॰॰ बच्चे और युवा ही देश का सबसे अमूल्य संसाधन हैं उन्हें ग़लत दिशा में जाने से रोक लीजिए वो आपकी ही नही देश की भी धरोहर हैं॰॰॰ उनका संरक्षण भी आवश्यक और आज की बेबस पुकार है॰॰॰ सोच कर देखिए॰॰॰