वेद, पुराण, गीता और स्मृतियों में उल्लेखित चार पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक सनातनी को कर्तव्यों के प्रति जाग्रत रहना चाहिए।
ऐसा ज्ञानीजनों का कहना है। दुख: है तो दुख से मुक्ति का उपाय भी कर्तव्य ही है।
प्रमुख कर्तव्य निम्न है:-
संध्योपासन, व्रत, तीर्थ, उत्सव, सेवा, दान, यज्ञ और संस्कार।
आज हम जानते हैं दान के महत्व को।
वेदों में तीन प्रकार के दाता कहे गए हैं- 1. उक्तम, 2.मध्यम और 3.निकृष्ट।
धर्म की उन्नति रूप सत्यविद्या के लिए दान जो देता है वह उत्तम।
कीर्ति या स्वार्थ के लिए जो देता है तो वह मध्यम और जो वेश्यागमनादि, भांड, भाटे, पंडे को देता वह
निकृष्ट माना गया है।
पुराणों में अनेकों दानों का उल्लेख मिलता है जिसमें अन्नदान, विद्यादान, अभयदान और धनदान को ही श्रेष्ठ माना गया है, यही पुण्य भी है
यह उस व्यक्ति की निशानी है जिसे आत्मज्ञान हासिल हो चुका है। दान देने के बदले में धन्यवाद या बधाई की उम्मीद करना उपहार नहीं सौदा कहलाता है।
अत: यदि हम किसी को कुछ दान या सहयोग करना चाहते हैं तो हमें ऐसा बिना किसी उम्मीद या आशा के करना चाहिए ताकि यह हमारा समर्पण हो ना कि हमारा अहंकार।
कंचन दीया कर्ण ने, द्रौपदी ने चीर
जो दीया सो पाइया, ऐसे कहैं कबीर
संत कबीर भी कहते हैं कर्ण ने स्वर्ण दान दिया और द्रोपदी ने वस्त्र का दान दिया। उन्होने जो दान दिया उससे कई गुना बढ़कर उनको प्राप्त हुआ।
भाव-कर्ण को अनंत यश मिला तो चीर हरण के समय द्रोपदी को भगवान श्री कृष्ण ने वस्त्र प्रदान किया। यह प्रकृति का बनाया हुआ है जितना देंगे उससे कई गुना आपको वापस प्राप्त होगा जो भी आप समाज को परोसेगे उसी की वापसी आपको प्राप्त होगी।
पुरुषोत्तम मास के देवता श्रीहरि विष्णु हैं। अत: जिन कार्यों के कोई देवता नहीं है तो उनका दान भगवान विष्णु को देवता मानकर देने का बहुत महत्व माना गया है।
हमारे धर्मों में जप, तप, दान और यज्ञ का बड़ा महत्व माना गया है। ग्रहों का दान, गोदान, कन्या दान, सोना-चांदी, खाने-पीने की वस्तुएं तथा दवा-औषधि आदि का दान बहुत ही लाभदायी और महापुण्यकारी माना गया है। इनमें से खास तौर पर सोना-चांदी, गोदान तथा कन्या दान को हमारे शास्त्रों ने दान की श्रेष्ठ श्रेणी में रखा है। आइए जानें कैसे दें दान और कौन हैं उनके देवता :-
कौन हैं दान के देवता : दान में जो चीज दी जा रही है, उसके अलग-अलग देवता कहे गए हैं।
- सोने के देवता अग्नि है, दास के प्रजापति है।
- गाय के देवता रूद्र हैं।
- जिन कार्यों के कोई देवता नहीं है, उनका दान विष्णु को देवता मानकर दिया जाता है।
कैसे दें दान की दक्षिणा :
- दान करते समय दान लेने वाले के हाथ पर ‘जल’ गिराना चाहिए।
- दान लेने वाले को ‘दक्षिणा’ अवश्य देनी चाहिए।
- पुराने जमाने में दक्षिणा सोने के रूप में दी जाती थी, लेकिन अगर सोने का दान किया जा रहा हो तो उसकी दक्षिणा चांदी के रूप में दी जाती है।
- दान लेने की स्वीकृति मन से, वचन से या शरीर से दी जा सकती है।
- दान का अर्थ है, अपनी किसी वस्तु का स्वामी किसी दूसरे को बना देना।
भारतीय संस्कृति मे दान का महत्व सर्वाधिक बताया गया है, दान का अर्थ सिर्फ किसी चीज को लेना नहीं है। दान को स्वीकार करना प्रतिग्रहण है।
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